अमानवीयता का पर्याय है भारतीय जेल
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर जेलों मे सुधार के लिए दिशा निर्देश जारी किये है । इसके पहले भी इसी प्रकार के दिशा निर्देश जारी किये जा चुके है लेकिन किसी राज्य सरकार ने उनका अनुपालन नहीं किया । एक विदेशी युवती ने 1977 -78के दौरान" भारतीय जेलों मे मेरे तेरह वर्ष " किताब लिखी थी । बेनज़ीर भुट्टो ने भी अपनी आत्म कथा " मै बेनज़ीर " मे जेलों मे विचाराधीन बन्दियो के साथ की जा रही अमानवीयता का हृदयविदारक विवरण प्रस्तुत किया है। आपात कालके दौरान विचाराधीन बन्दी का जीवन मैने भी जिया है । जेल अधिकारी अपने आपको अंग्रेज शासक और बन्दियो को गुलाम मानने की मानसिकता से उबर नहीं सके है । जेल का भोजन किसी भी दशा में खाने योग्य नहीं होता । बन्दियो से अमानवीय स्थितियों मे जबरन काम कराना , उन्हे हर क्षण अपमानित करना आम बात है। एक बैरक मे 50 लोगों के रहने की जगह है लेकिन 150-200 लोग उसमे रखे जाते है । एक बैरक मे एक शौचालय , सोचिए कया स्थिति होती होंगी? माहवारी के दिनों मे महिलाओं की दशा के बारे मे सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते है और दूसरी ओर जिनके पास पैसा है ,राजनैतिक रसूखदारों है ,वे जेल मे भी राजसी जीवन जीते है । जिला जजों को जेल का आकस्मिक निरीक्षण करने का अधिकार मिला हुआ है और वे भी निरीक्षण की औपचारिकता निभाते है । आज तक किसी जिला जज को जेल मे कोई कमी नहीं मिली इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों से मुझे सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिखती ।
सर्वोच्च न्यायालय ने एक बार फिर जेलों मे सुधार के लिए दिशा निर्देश जारी किये है । इसके पहले भी इसी प्रकार के दिशा निर्देश जारी किये जा चुके है लेकिन किसी राज्य सरकार ने उनका अनुपालन नहीं किया । एक विदेशी युवती ने 1977 -78के दौरान" भारतीय जेलों मे मेरे तेरह वर्ष " किताब लिखी थी । बेनज़ीर भुट्टो ने भी अपनी आत्म कथा " मै बेनज़ीर " मे जेलों मे विचाराधीन बन्दियो के साथ की जा रही अमानवीयता का हृदयविदारक विवरण प्रस्तुत किया है। आपात कालके दौरान विचाराधीन बन्दी का जीवन मैने भी जिया है । जेल अधिकारी अपने आपको अंग्रेज शासक और बन्दियो को गुलाम मानने की मानसिकता से उबर नहीं सके है । जेल का भोजन किसी भी दशा में खाने योग्य नहीं होता । बन्दियो से अमानवीय स्थितियों मे जबरन काम कराना , उन्हे हर क्षण अपमानित करना आम बात है। एक बैरक मे 50 लोगों के रहने की जगह है लेकिन 150-200 लोग उसमे रखे जाते है । एक बैरक मे एक शौचालय , सोचिए कया स्थिति होती होंगी? माहवारी के दिनों मे महिलाओं की दशा के बारे मे सोचते ही रोंगटे खड़े हो जाते है और दूसरी ओर जिनके पास पैसा है ,राजनैतिक रसूखदारों है ,वे जेल मे भी राजसी जीवन जीते है । जिला जजों को जेल का आकस्मिक निरीक्षण करने का अधिकार मिला हुआ है और वे भी निरीक्षण की औपचारिकता निभाते है । आज तक किसी जिला जज को जेल मे कोई कमी नहीं मिली इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों से मुझे सुधार की कोई उम्मीद नहीं दिखती ।
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