गोपी श्याम जी नहीं रहे
कानपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे , हम सबके आदर्श आदरणीय गोपी श्याम जी निगम अब नहीं रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष तक की यात्रा के दौरान सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से हम सबको प्रेरणा मिलती थी। हमारे प्रति वे सदैव आत्मीय रहे । मै उनका विद्यार्थी रहा हूँ। उनहीं की प्रेरणा से हमने सिविल मामलों की वकालत शुरू की । मैं अंग्रेजी मे अपने अल्प ज्ञान के कारण सिविल की वकालत करने से ड़र रहा था । उन्होंने मेरा ड़र दूर किया , मुझे हिम्मत दिलाई और कहा कि शुरूआत करो , अंग्रेजी भी सीख जाओगे , सिविल की प्रैक्टिस मे मेहनत करनी पड़ेगी , रोज पढना पड़ेगा । एक बार मेहनत् की आदत बन जायेगी तो बाद मे फौजदारी की प्रैक्टिस करने मे आसानी होगी । उनके इस ब्रहम वाक्य का मैने पालन किया और उसी के कारण ए ड़ी जी सी क्रिमिनल के पद पर काम करने मे मुझे कोई असुविधा नही हुई और दूसरी ओर भारत सरकार के सिविल मामलो मे अपने विद्वान साथियों का सामना करने मे मुझे कभी कोई दिक्कत नही आई। श्रम न्यायालयों के सामने भी मेरा आत्म विश्वास कभी कमजोर नही पड़ता। अपने जूनियर्स और विद्यार्थियों को पुत्र मानकर उनका मार्ग दर्शन करना उनकी आदत थी । कचहरी मे मुझे कभी अकेलेपन का अहसास नहीं हुआ। किसी भी परिस्थिति मे उनके साथ खड़े रहने का विश्वास हिम्मत देता था । क्या भूलें क्या याद करें , उनके आत्मीय मार्ग दर्शन के अनेकों किस्से हैं । उनकी स्मृतियाँ अब हमारा मार्गदर्शन करेगी । हमे हिम्मत दिलायेंगी । वास्तव मे आज हमने अपना दूसरा पिता खोया है । भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
कानपुर बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे , हम सबके आदर्श आदरणीय गोपी श्याम जी निगम अब नहीं रहे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक से अधिवक्ता परिषद के अध्यक्ष तक की यात्रा के दौरान सामाजिक सरोकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता से हम सबको प्रेरणा मिलती थी। हमारे प्रति वे सदैव आत्मीय रहे । मै उनका विद्यार्थी रहा हूँ। उनहीं की प्रेरणा से हमने सिविल मामलों की वकालत शुरू की । मैं अंग्रेजी मे अपने अल्प ज्ञान के कारण सिविल की वकालत करने से ड़र रहा था । उन्होंने मेरा ड़र दूर किया , मुझे हिम्मत दिलाई और कहा कि शुरूआत करो , अंग्रेजी भी सीख जाओगे , सिविल की प्रैक्टिस मे मेहनत करनी पड़ेगी , रोज पढना पड़ेगा । एक बार मेहनत् की आदत बन जायेगी तो बाद मे फौजदारी की प्रैक्टिस करने मे आसानी होगी । उनके इस ब्रहम वाक्य का मैने पालन किया और उसी के कारण ए ड़ी जी सी क्रिमिनल के पद पर काम करने मे मुझे कोई असुविधा नही हुई और दूसरी ओर भारत सरकार के सिविल मामलो मे अपने विद्वान साथियों का सामना करने मे मुझे कभी कोई दिक्कत नही आई। श्रम न्यायालयों के सामने भी मेरा आत्म विश्वास कभी कमजोर नही पड़ता। अपने जूनियर्स और विद्यार्थियों को पुत्र मानकर उनका मार्ग दर्शन करना उनकी आदत थी । कचहरी मे मुझे कभी अकेलेपन का अहसास नहीं हुआ। किसी भी परिस्थिति मे उनके साथ खड़े रहने का विश्वास हिम्मत देता था । क्या भूलें क्या याद करें , उनके आत्मीय मार्ग दर्शन के अनेकों किस्से हैं । उनकी स्मृतियाँ अब हमारा मार्गदर्शन करेगी । हमे हिम्मत दिलायेंगी । वास्तव मे आज हमने अपना दूसरा पिता खोया है । भगवान् उनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करें।
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